Tuesday, September 6, 2011

हमारे अपने ही हमे रुलाते है ...........

जिंदगी में दोस्तों ऐसे भी दिन आते है 
हमारे अपने ही हमे रुलाते है ........... 
 
ये जो गीत लिखकर हम सुनाते है
 इन्हें याद कर वो भी गुनगुनाते है
वादे तो करते है वो लाखो
मगर नहीं एक भी निभाते है
 
जिंदगी में दोस्तों ऐसे भी दिन आते है 
हमारे अपने ही हमे रुलाते है ........... 
 
वो जो इतने दूर है हमसे
इंतजार में बैठे है जिनके कबसे
पता नहीं क्यों रूठे है वो इस कद्र
की अब तो वो खवाबो में भी नहीं आते है
 
जिंदगी में दोस्तों ऐसे भी दिन आते है 
हमारे अपने ही हमे रुलाते है ........... 
 
कई बार हसीं सपने दिखाते है
और देखकर हमको मुस्कुराते है
और इस ज़माने में वक़्त पर
साये भी साथ छोड़ जाते है
 
जिंदगी में दोस्तों ऐसे भी दिन आते है 
हमारे अपने ही हमे रुलाते है ........... 

Tuesday, March 15, 2011

बन के दिखाओ विश्वामित्र तब आएगी मेनका

जलता रहा है दिल कब से, अब सिर्फ राख बाकी है
मिल ना सका प्यार जो उसकी अभी भी तलाश बाकी है
यू नहीं गुजारते रात जाग कर
और नींद में भी चीखते रहे
मुझे प्यार कर ,मुझे प्यार कर
दुरिया मिटाने की हर संभव प्रयास जारी है
हर लड़की लगती खुबसूरत हर लड़की लगती प्यारी है
फिर भी कोई पास ना आए तो दिल क्या करे,
टकटकी लगा कर देख रहे सबको हम खड़े खड़े

जाने कितनी गालियाँ पड़ी और पिट चूका कई बार है
पर प्यार के लिए हर जिल्लत, हर मार करनी पड़ती स्वीकार है
ऐ दोस्त मेरे तू गम ना कर वो दिन कभी तो आएगा
कोई तो देख तुम्हे शर्माएगी जब तू देख उसे मुस्काएगा
मत सोचो गोरी है या काली, सुंदरी के कई रूप है
जो मिल जाए अपना लो ,सब एक ही चाहत की धुप है
अर्जुन की तरह तुम्हारा लक्ष्य केवल पाना प्यार है
चाहे जो भी करना पड़े तुम्हे अगर सब स्वीकार है
तो जान लो ये कि तेरा इतना मेहनत करना बेकार है
आज कल प्यार बिकाऊ है ,सारी दुनिया खरीदार है

अगर पैसा है ,बना सकते हो बातें गोल गोल
तो तेरी भी बज सकती है फटी ढोल
खुल के बोली लगा दे किसी के नाम की
तुझे ज़रूर मिलेगी तेरे काम की
क्या कहा, ना बातें बड़ी नाही पैसा है
तो तू भी मेरे जैसा है
आ बैठ , फेर लड़कियों के नाम की मनका
बन के दिखाओ विश्वामित्र तब आएगी मेनका

Tuesday, February 1, 2011

तलाश आँसुओं के ढेर में...

आँसुओं के ढेर में एक मीठी   मुस्कान ढूँढता हूँ ,
या फिर आँसुओं की धार में कुछ अंगार ढूँढता हूँ.
कोई तो जाने कि इस अनजाने से शहर में, मैं
घने सायों के बीच मुठ्ठी भर आसमान ढूँढता हूँ.
बहुत कुछ खोया मैंने  अपना सब कुछ लुटा कर,
खुशियाँ भी खोयीं, उसे बस  एक बार अपना कर.
अपनों को खोया,  उन परायों के शहर में जा कर.
अब अपने कदमों के तले, जमीं पर, अनजाना  सा,
जो अपना सा लगे, एक प्यारा  इंसान ढूँढता हूँ.
आँसुओं के ढेर में एक मीठी मुस्कान ढूँढता हूँ.
या फिर आँसुओं की धार में कुछ अंगार ढूँढता हूँ.
ये अंगार मेरे आँसुओं को सुखाने के काम आयेंगे.
बीती अच्छी-बुरी यादों को जलाने के काम आयेंगे,
इन अंगारों को भी दिल में सहेज कर रख लूँगा,
मन के  अंधेरों में रौशनी  दिखाने के काम आयेंगे.
अब तो समझो, कि क्यों  इन पत्थर के इंसानों में ,
अनजाना सा, अपना सा, प्यारा मेहमान ढूँढता हूँ.
आँसुओं के ढेर में एक मीठी मुस्कान ढूँढता हूँ.
या फिर आँसुओं की धार में कुछ अंगार ढूँढता हूँ.

Sunday, January 9, 2011

चोट खाकर भी मुस्कुराते नहीं तो क्या करते।। दिल के जज्बात दिल में दबाते नहीं तो क्या करते।

चोट खाकर भी मुस्कुराते नहीं तो क्या करते।
दिल के जज्बात दिल में दबाते नहीं तो क्या करते।।

भरी महफिल में जब उन्होंने न पहचाना हमको।
नजर हम अपनी झुकाते नहीं तो क्या करते।।

उनके दुपट्टे में लगी आग न हमसे देखी जाती।
हाथ हम अपना जलाते नहीं तो क्या करते।।

दोस्तों ने जब सरे राह छोड दिया मुझको।
तब हम गैरों को बुलाते नहीं तो क्या करते।।

किस मुददत से वो देख रहा था राह मेरी।
वादा हम अपना निभाते नहीं तो क्या करते।।

चोट खाकर भी मुस्कुराते नहीं तो क्या करते।।
दिल के जज्बात दिल में दबाते नहीं तो क्या करते।

अपने दरवाजे पर खडा रहता हूं जोकर बन कर। जरा सी चाहत है मुसाफिरों को हंसाने की।।

 बात पते की है इसलिए बतानी थी।
अब तो आदत सी हो गई है मुस्कुराने की।।

उन्होंने कह रखा है कि मुंह नहीं खोलना।
इसलिए अपनी आदत है गुनगुनाने की।।

रूठने वालों का दर्द हमको मालूम है।
इसलिए कोशिश करते हैं सबको मनाने की।।

अपने दरवाजे पर खडा रहता हूं जोकर बन कर।
जरा सी चाहत है मुसाफिरों को हंसाने की।।

हमसफर दोस्तों इस बात का ख्याल रखना।
तुम्हारे एक साथी की आदत है डगमगाने की।।

किसी से वादा बडा सोच समझ कर करते हैं।
क्या करें दिमाग में एक कीडा है जो सलाह देता है इसे निभाने की।।

बात पते की है इसलिए बतानी थी।
अब तो आदत सी हो गई है मुस्कुराने की।।

Saturday, January 8, 2011

ये 'पत्थर' भी हर रात अपने

हँसते हुए चेहरे के पीछे गम भी होता है।
सूखी नज़रों के पीछे दिल नम भी होता है।।
मैं अगर नहीं रोता, तो क्या 
मेरे अन्दर कोई जज्बात नहीं।
मेरी नज़रों में अगर चमक है, तो क्या 
मेरी ज़िन्दगी में कहीं काली रात नहीं।।
सूरज के पीछे भी अँधेरा हो सकता है।
हंसने वाला भी छिप के रो सकता है।।
मैं तो चाहता हूँ कि सबके गम पी लूं।
सबकी काली रातें अकेले जी लूं।।
मैं जल जाता हूँ औरों की गरमी के लिए,
मैं गल जाता हूँ औरों की नरमी के लिए ।
मैं ढल जाता हूँ नए सूरज के लिए,
मेरी राख है किसी काजल की जरूरत के लिए।।
मगर, दुनिया कहती है 
मैं बेशरम हँसता हुआ पत्थर हूँ।
आंसुओं के सूखने से बने
रेत का समन्दर हूँ।।
उन्हें लगता है इस बेशरम पत्थर पर
उनके वार का जख्म शायद कुछ कम ही होता है।
मगर सच ये है दुनिया वालों, कि
ये 'पत्थर' भी हर रात अपने 
दामन में छिप-छिप के रोता है।।

काश ……

ये उन सभी लोगो के लिये है जो काश शब्द का प्रयोग करते है , काश अच्छा शब्द है किन्तु तब जब इसे हम भविष्य बनाने के लिये प्रयोग करें ,क्यो कि समय निकलने के बाद जब जब हम इसको बोलते है ,  तो हमेशा ये एक टीस के साथ ही आता है । 
काश  ……