Sunday, January 9, 2011

चोट खाकर भी मुस्कुराते नहीं तो क्या करते।। दिल के जज्बात दिल में दबाते नहीं तो क्या करते।

चोट खाकर भी मुस्कुराते नहीं तो क्या करते।
दिल के जज्बात दिल में दबाते नहीं तो क्या करते।।

भरी महफिल में जब उन्होंने न पहचाना हमको।
नजर हम अपनी झुकाते नहीं तो क्या करते।।

उनके दुपट्टे में लगी आग न हमसे देखी जाती।
हाथ हम अपना जलाते नहीं तो क्या करते।।

दोस्तों ने जब सरे राह छोड दिया मुझको।
तब हम गैरों को बुलाते नहीं तो क्या करते।।

किस मुददत से वो देख रहा था राह मेरी।
वादा हम अपना निभाते नहीं तो क्या करते।।

चोट खाकर भी मुस्कुराते नहीं तो क्या करते।।
दिल के जज्बात दिल में दबाते नहीं तो क्या करते।

2 comments:

  1. बहुत सुन्दर एहसासों का ताना बाना बुना है दोस्त !

    बहुत बहुत बधाई !

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  2. शब्द पुष्टिकरण हटा दें तो टिप्पणी करने में आसानी होगी ..धन्यवाद
    वर्ड वेरिफिकेशन हटाने के लिए
    डैशबोर्ड > सेटिंग्स > कमेंट्स > वर्ड वेरिफिकेशन को नो NO करें ..सेव करें ..बस हो गया

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