वो नाराज़ हैं हमसे की हम कुछ लिखते नहीं ,
कहाँ से लायें लफ्ज़ जब हमको ही मिलते नहीं ,
दर्द की जुबान होती तोह बता देते शायद ,
वो ज़ख्म कैसे कहें जो दीखते नहीं |
Tuesday, January 4, 2011
जब मौका मिले थोडा हस लेना और हसा देना
गिले शिकवे न दिल से लगा लेना,
कभी मान जाना तो कभी मना लेना,
कल का क्या पता हम हो न हो,
जब मौका मिले थोडा हस लेना और हसा देना
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